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अपशब्द की व्याख्या

अपशब्द की व्याख्या

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किताब के बारे में

प्रस्तुत लेख “अपशब्द की व्याख्या” एक प्रयास है, कुटिल और अभद्र भाषा के प्रभाव का उचित शब्दों के प्रयोग में भविष्य बदलने की शक्ति होती है। अपशब्दों का प्रयोग करना न केवल स्वयं आत्मविश्वास की कमी का जीता जगता उदाहरण है बल्कि नकारात्मक भाषा के प्रयोग से सामने वाले की भावना व संवेदनशीलता भी आहत होती है । मधुर वाणी का प्रयोग सकारात्मक माहौल और सफलता को आकर्षित करता है। अपशब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर में असभ्य या अनुचित माना जाता है। परन्तु अपशब्द बोले क्यों जाते हैं? यह अक्सर गुस्से, निराशा या किसी बात पर जोर देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तथा व्यक्तिगत रूप से अस्तित्वगत भय से जोड़ते हैं। किताब से जितना ज़्यादा आप सीखेंगे, ज़िंदगी से उतना ही ज़्यादा सीखेंगे। एक लघु पुस्तक में सारी बातें समाहित करना बहुत मुश्किल है, फिर भी अपशब्दों का प्रयोग, कैसे हमारी जिंदगी को पूर्णतया: प्रभावित करते हैं, यह काम बड़ी सहजता से किया गया है।

लेखक के बारे में

लेखक, देवेश चन्द्र प्रसाद, बिहार के अधिवासी हैं तथा वर्ष १९७२ में इनके पिता के BHEL, हरिद्वार में स्थानांतरण होने के कारण, इन्होने अपनी शिक्षा, मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन तक हरिद्वार (उत्तराखंड) से पूर्ण की । वर्तमान में लेखक केंद्र सरकार में अनुभाग अधिकारी के रूप में कार्यरत है। एक उभरते हुए लेखक के रूप में वह अपनी पहली पुस्तक, ‘अपशब्द की व्याख्या’ के साथ साहित्य जगत में कदम रख रहे हैं। लेखक का उद्देश्य उपर्युक्त को सरल और समझने योग्य हिंदी भाषा में पाठकों के सामने प्रस्तुत करना है। लेखक, लेखनी के अतिरिक्त गिटार वाद्ययंत्र बजाने, सुडोकू (एक तर्क-आधारित संख्या पहेली) खेलने में और बागवानी करने में रूचि रखते हैं।

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