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मैं पत्थर सही, तू रह पानी-पानी…!!

मैं पत्थर सही, तू रह पानी-पानी…!!

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About The Book

"" मैं पत्थर सही, तू रह पानी-पानी"" — एक प्रतीक-यात्रा

जीवन एक सतत प्रवाह है — कहीं चट्टानों-सा अडिग, तो कहीं जलधाराओं-सा चंचल। यह संग्रह ""पत्थर"" और ""पानी"" जैसे दो विरोधी प्रतीकों के माध्यम से उन्हीं जीवन स्थितियों को रूप देता है, जो हर व्यक्ति अपने अंदर जीता है — कभी कठोर होकर टूटने से बचता है, कभी तरल होकर बहने से।

'पत्थर' यहाँ मात्र एक निष्क्रिय वस्तु नहीं, बल्कि संघर्षों में तपकर खड़ा हुआ वह मनुष्य है, जो जीवन के तूफानों से भिड़ता है, दूसरों को सहारा देता है, पर अपने भीतर असहनीय पीड़ाएँ भी छिपाए होता है। वह गिरता है, टूटता है, फिर भी राह बनाता है।

वहीं 'पानी' — सरलता, संवेदना, बहाव और कभी-कभी अवसरवादी प्रवृत्ति का प्रतीक है। वह चुपचाप परिस्थितियों के साथ ढल जाता है, पर वही नदी बनकर रास्ते भी काट देता है।

इस श्रृंखला में कहीं आत्मसंघर्ष है, कहीं सामाजिक विडंबना, कहीं प्रेम की खामोशी है, तो कहीं आत्मस्वीकृति की दृढ़ता। इन कविताओं में एक राही है, जो चलते-चलते पत्थर से पानी की, और पानी से पत्थर की प्रकृति को पहचानता है — और अंत में कहता है:

""मैं पत्थर सही, तू रह पानी-पानी...""

यह संग्रह केवल कविता नहीं — एक आंतरिक संवाद है, जो हर उस व्यक्ति से है, जिसने जीवन में कभी किसी ‘पत्थर’ को छुआ है, या किसी ‘पानी’ में खुद को बहते देखा है।

About The Author

जब कोई व्यक्ति मेरा परिचय जानना चाहता है या मुझसे पूछता है, तो मेरे मन में एक विचार सदैव उत्पन्न होता है कि क्या मेरा वास्तविक परिचय मुझे स्वयं ज्ञात है, जिसे मैं बता सकूं। परंतु अगले ही क्षण यह समझ आता है कि सामने वाला व्यक्ति मुझसे मेरा सांसारिक परिचय पूछ रहा है। अतः यहां भी मुझे अपना सांसारिक परिचय ही देना होगा, और वही मुझे ज्ञात भी है। मेरा सांसारिक परिचय कुछ इस प्रकार है:

मैं, अरविंद सिंह, एक साधारण परिवार में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के रसूलपुर नामक ग्राम में जन्मा। मेरी माता, श्रीमती लालती, और पिता, श्री बलिराम सिंह, के आँगन में इस धरा पर पदार्पण करने का सौभाग्य मिला। माता-पिता के पुण्य प्रताप और उनके प्रयासों के फलस्वरूप मेरा पठन-पाठन सुचारु रूप से संपन्न हुआ।

प्रारंभिक और इंटरमीडिएट शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात मैंने फिलॉसफी में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद फार्मास्यूटिकल्स में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और अपने आजीविका के रूप में फार्मास्यूटिकल्स पेशेवर के तौर पर आगे बढ़ा। इसी दौरान मैंने एमबीए की डिग्री भी अर्जित की।

""अपितु लेखन के क्षेत्र में मेरा परिचय बस इतना ही है कि यह मेरी द्वितीय पुस्तक है। मेरी प्रथम पुस्तक '4 कप टी इन ए नाइट' जनवरी 2025 में अस्तित्व प्रकाशन के माध्यम से प्रकाशित हुई थी, जिसमें एक प्रेरणादायक कहानी के साथ-साथ कविताओं का भी समन्वय था।""

मैं एक बार फिर से अस्तित्व प्रकाशन का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मुझ जैसे अपरिचित व्यक्ति को आप सबके समक्ष प्रस्तुत होने का अवसर प्रदान किया।

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